Lata Mangeshkar
Rasm-E-Ulfat Ko Nibhaye, Pt. 2
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ तो निभाएँ कैसे?
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ तो निभाएँ कैसे?
हर तरफ़ आग है, दामन को बचाएँ कैसे?
हर तरफ़ आग है, दामन को बचाएँ कैसे?
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ

दिल की राहों में उठाते हैं जो दुनिया वाले
दिल की राहों में उठाते हैं जो दुनिया वाले
कोई कह दे कि वो दीवार गिराएँ कैसे
कोई कह दे कि वो दीवार गिराएँ कैसे
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ

दर्द में डूबे हुए नग़मे हज़ारों हैं मगर
दर्द में डूबे हुए नग़मे हज़ारों हैं मगर
साज़-ए-दिल टूट गया हो तो सुनाएँ कैसे?
साज़-ए-दिल टूट गया हो तो सुनाएँ कैसे?
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ

बोझ होता जो ग़मों का तो उठा भी लेते
बोझ होता जो ग़मों का तो उठा भी लेते
ज़िंदगी बोझ बनी हो तो उठाएँ कैसे?
ज़िंदगी बोझ बनी हो तो उठाएँ कैसे?

रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ तो निभाएँ कैसे?
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ