Kailash Kher
Taandav
शोर है अंधेर में
जो ढ़ेर मुर्दा पेड़ों का
सुलग गया, झुलस गया
लो ज्वाला ज्वाला आग है
काठ ही के ढ़ेर में
वो फेर जीव जन्म का
लो जल गया धुआँ हुआ
लो स्वाहा स्वाहा राख है

डमरुओं को डमडमाता
क्रोध नाचे क्रुद्ध क्रुद्ध
डमरुओं को डमडमाता
क्रोध नाचे क्रुद्ध क्रुद्ध

मस्तकों में माया-माया
चट-चटकती
खट खटकती
भट-भटकती नाचती
छातियों में त्राहि-त्राहि!
धन-धनकती
झन-झनकती
एक सुलगती त्रासदी!

योजनाएँ यम बनाता
काल दौड़े तमतमाता
अंतरिक्ष सब समय के
डमरूओं को डमडमाता
डमरुओं को डमडमाता
क्रोध नाचे क्रुद्ध क्रुद्ध
डमरुओं को डमडमाता
क्रोध नाचे क्रुद्ध क्रुद्ध

ओ..

डमरुओं को डमडमाता
क्रोध नाचे क्रुद्ध क्रुद्ध
डमरुओं को डमडमाता
क्रोध नाचे क्रुद्ध क्रुद्ध

ओ हो...

सूर्या के जो तूर्य थे
बज रहे धारा पे हैं
रुंड मुंड झुंड से ये दब रही धारा
मंथनो को चूसते नीले नीले होंठ हैं
सौ सौ ज्वार फूंकती हैं सर्प सी भुजा

शोर है अंधेर में
जो ढ़ेर मुर्दा पेड़ों का
सुलग गया, झुलस गया
लो ज्वाला ज्वाला आग है
काठ के ही ढ़ेर में
वो फेर जीव जन्म का
लो जल गया धुआँ हुआ
लो स्वाहा स्वाहा राख है
डमरुओं को डमडमाता
क्रोध नाचे क्रुद्ध क्रुद्ध
डमरुओं को डमडमाता
क्रोध नाचे क्रुद्ध क्रुद्ध

ओ...

डमरुओं को डमडमाता
क्रोध नाचे क्रुद्ध क्रुद्ध
डमरुओं को डमडमाता
क्रोध नाचे क्रुद्ध क्रुद्ध

ओ हो...