Jagjit Singh
Kabhi To Khul Ke Baras
[Intro]
कभी तो खुल के बरस अब्रे-ऐ-मेहेरबान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब्रे-ऐ-मेहेरबान की तरह

[Chorus]
मेरा वज़ूद है जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब्रे-ऐ-मेहेरबान की तरह

[Verse 1]
मैं एक ख्वाब सही आपकी अमानत हू
मैं एक ख्वाब सही आपकी अमानत हू
मुझे संभाल के रखिएगा जिस्म-ओ-जान की तरह

[Chorus]
मेरा वज़ूद है जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब्रे-ऐ-मेहेरबान की तरह

[Verse 2]
कभी तो सोच के वो शख्स किस कदर था बुलंद
कभी तो सोच के वो शख्स किस कदर था बुलंद
जो बिच्छ गया तेरे कदमो मे आसमान की तरह

[Chorus]
मेरा वज़ूद है जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब्रे-ऐ-मेहेरबान की तरह
[Verse ]
बुला रहा है मुझे फिर किसी बदन का बसंत
बुला रहा है मुझे फिर किसी बदन का बसंत
गुज़र ना जाए ये रुत भी कही खिज़ां की तरह

[Chorus]
मेरा वज़ूद है जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब के मेहेरबान की तरह