Arijit Singh
Chhod Diya
छोड़ दिया वो रास्ता
जिस रास्ते से तुम थे गुज़रे
छोड़ दिया वो रास्ता
जिस रास्ते से तुम थे गुज़रे
तोड़ दिया वो आईना
जिस आईने में तेरा अक्स दिखे

मैं शहर में तेरे था गैरों सा
मुझे अपना कोई ना मिला
तेरे लम्हों से, मेरे ज़ख्मों से
अब तो मैं दूर चला
रुख ना किया उन गलियों का
जिन गलियों में तेरी बातें हो

छोड़ दिया वो रास्ता
जिस रास्ते से तुम थे गुज़रे

मैं था मुसाफ़िर राह का तेरी
तुझ तक मेरा था दायरा

मैं था मुसाफ़िर राह का तेरी
तुझ तक मेरा था दायरा
मैं भी कभी था मेहबर तेरा
खानाबदोश मैं अब ठेहरा
खानाबदोश मैं अब ठेहरा
छूता नहीं उन फूलों को
जिन फूलों में तेरी खुशबू हो
रूठ गया उन ख़्वाबों से
जिन ख़्वाबों में तेरा ख़्वाब भी हो

कुछ भी ना पाया मैंने सफ़र में
होके सफ़र का मैं रह गया

कुछ भी ना पाया मैंने सफर में
होके सफर का मैं रह गया
कागज़ का वो शीदाघर था
भीगते बारिश में बह गया
भीगते बारिश में बह गया

देखूँ नहीं उस चाँदनी को
जिस में के तेरी परछाई हो
दूर हूँ मैं इन हवाओं से
ये हवा तुझे छू के भी आयी ना हो